आचार्य कृपलानी के पांच महत्वपूर्ण लेखों/भाषणों का संकलन
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सन् 1917 में मुजफ्फरपुर (बिहार) में अच्छी खासी प्रोफेसरी की नौकरी
छोड़ गांधी के चंपारण आंदोलन में शामिल होने के बाद आचार्य कृपलानी ने अपने कदम
जिंदगी के चालू रास्ते पर फिर कभी नहीं डाले। कभी कंधे पर कपड़ों का गट्ठर रख कर
गली-गली खादी बेची तो कभी देश के सबसे बड़े राजनैतिक दल के महासचिव व अध्यक्ष जैसे पदों पर रहने के बाद भी
राजनीति को मोड़कर जेब में डाल दिया। ऐसे विलक्षण कृपलानी जी के कुछ महत्वपूर्ण
लेखों-भाषणों का यह संकलन पाठकों को नई ऊर्जा व नया अनुभव देता है।
संकलन में उनके दो ऐसे भाषण भी समाहित हैं जिनसे स्वातंत्र्योत्तर भारत के प्रति उनके दृष्टिकोण को समझा जा सकता है। ये दोनों भाषण प्रेरक तो हैं ही देशभक्त आंदोलनकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं गांधी विचार के अनुगामियों आदि के लिए भी बहुत कुछ कहते हैं। इन भाषणों में भारत के भविष्य निर्माताओं के लिए कुछ महत्वपूर्ण सूत्र व संकेत निहित हैं।
मार्च 1948 के रचनात्मक कार्यकर्ता सम्मेलन में दिए गए ये भाषण इस कारण भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं कि यह सम्मेलन महात्मा गांधी की हत्या के ठीक बाद (लगभग डेढ़ माह बाद) हो रहा था। देश को स्वतंत्रता हासिल किए हुए भी अभी मात्र लगभग सात माह ही हुए थे। कहने की जरूरत नहीं कि देश उस समय नई दिशा तय करने के मुहाने पर खड़ा था। देश के नेताओं के सामने देश की दिशा तय करने का महत्वपूर्ण सवाल तो था ही स्वतंत्रता आंदोलन में रत रहे सेनानियों, कार्यकर्ताओं, संगठनों-संस्थाओं आदि के सामने भी नई परिस्थितियों में अपनी भूमिका को परिभाषित करने की चुनौती सामने थी। ऐसी परिस्थितियों में आचार्य कृपलानी के मस्तिष्क पटल पर क्या कुछ चल रहा था, यह जानना निश्चिय ही ज्यादा उपयोगी एवं दिलचस्प होगा।
दो महत्वपूर्ण भाषणों के अलावा इस पुस्तिका में आचार्य कृपलानी के तीन और लेख समाहित हैं। ‘गुलामी बापू की’ शीर्षक लेख में उन्होंने यह साफ-साफ बताने की कोशिश की है कि वे गांधी जी के विचारों से अनेक महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर भिन्न विचार रखने के बावजूद कैसे और क्यों पहली बार में ही उनके मुरीद हो गए तथा आजीवन उनके भक्त बने रहे। इसी तरह ‘जन्माष्टमी’ शीर्षक लेख में उन्होंने जन्माष्टमी के मौके पर अपनी मथुरा यात्रा का वृतांत लिखा है। इस वृतांत से उनके व्यक्तित्व एवं दृष्टिकोण का एक नया पहलू खुलकर सामने आता है। इसमें वे धर्म, परम्परा, आस्था आदि पर टिप्पणी करते हैं। यह लेख अनुपम मिश्र द्वारा मूल अंग्रेजी से अनुवादित है।
पुस्तिका का चौथा लेख ‘शान-शौक़त और गरीबी’ अंग्रेजी की पुस्तक ‘पौंप ऐंड पॉवर्टी’ से लिया गया है। ‘पौंप ऐंड पॉवर्टी’ शीर्षक पुस्तक में आचार्य कृपलानी द्वारा संसद में दिए गए दो भाषण संकलित हैं लेकिन इसकी लंबी प्रस्तावना खुद आचार्य कृपलानी ने ही लिखी है जिसे ‘शहादत का रास्ता’ में एक लेख के रूप में लिया गया है। इस लेख में उनके उन दोनों भाषणों का मूल तत्व लगभग आ गया है जो ‘पौंप ऐंड पॉवर्टी’ में संकलित हैं। यह प्रस्तावना आचार्य कृपलानी द्वारा 1957 में लिखी गई थी तथा इसका हिन्दी अनुवाद नवादा (गया, बिहार) के प्रो. रामस्वरूप भक्त ‘विभेश’ ने किया था जिसे हिन्दी में 1967 में संयुक्त समाजवादी पार्टी (नवादा) की ओर से प्रकाशित भी किया गया था।
कुल मिलाकर यह छोटी सी पुस्तिका गागर में सागर है। यह जितनी पठनीय है उतनी ही संग्रहणीय भी है।
दिनांक : 30 मई, 2014
अभय प्रताप
प्रबन्ध न्यासी
आ. कृ. मे. ट्रस्ट