Thursday, July 20, 2017

रिपोर्ट: 'गांधी-खादी एवं समग्र रचनात्मक कार्यक्रम' विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद



'गांधी-खादी एवं समग्र रचनात्मक कार्यक्रम' विषयक
दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद


नई दिल्ली, 20 जुलाई। आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट (एकेएमटी) एवं एवार्ड की ओर से 'गांधी-खादी एवं समग्र रचनात्मक कार्यक्रम' विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन हुआ।


नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित इस परिसंवाद में आमराय से खादी के स्वावलंबन पर जोर दिया गया और यह कहा गया कि गांधी ने खादी को विचार, दर्शन एवं नई समाज रचना का आधार बनाकर पेश किया था। अहिंसक आर्थिक रचना का मतलब होता है किसी से किसी का शोषण नहीं। आज खादी पर संकट है, खादी वालों की ओर से भी और सरकार की ओर से भी। जबसे नव उदारवादी व्यवस्था प्रारंभ हुई है, खादी का पराभव तेजी से हुआ है। 



परिसंवाद में कहा गया कि खादी सरकार मुक्त हो, सरकारी आयोग से मुक्त हो, यह समय की मांग है। आजादी के समय से खादी का काम हो रहा है, लेकिन सरकारी सहायता से इसे शुरू नहीं किया गया था। सर्व सेवा संघ की रचनात्मक समिति जिस तरह से पहले खादी का प्रमाणपत्र देती थी पुनः उसे शुरू करने की जरूरत है। सरकार से हमारा मतभेद नहीं है पर हम सरकार के नियंत्रण से मुक्ति चाहते हैं। खादी कमीशन हमारे लिए बना था हम खादी कमीशन के लिए नहीं बने थे। 

यह बात भी आई कि जब तक गांव आधारित खादी नहीं बनेगी  तब तक खादी का कल्याण नहीं होगा। गांवों में हम लोग गांव की बनी चीजों का उपयोग नहीं करते। गांवों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाए कि अपने जरूरत का साठ प्रतिशत वस्त्र वे खादी से पूर्ति करें। खादी की उपलब्धता सिर्फ गांधी आश्रमों तक सीमित ना रहे बल्कि इसे सामान्य बाजार में भी उपलब्ध कराया जाए। सौर चरखे का प्रचार-प्रसार हो।



 


परिसंवाद में खादी मिशन के संस्थापक-संयोजक एवं आचार्य विनोबा भावे के सचिव रह चुके बाल विजय भाई, नागालैंड गांधी आश्रम के अध्यक्ष एवं शांति के लिए कार्य कर रहे वरिष्ठ गांधीवादी नटवर ठक्कर, वरिष्ठ गांधीवादी पीएम त्रिपाठी, खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मीदास एवं डॉ. महेश शर्मा, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एएन त्रिपाठी एवं ब्रह्मदेव तिवारी, गांधी विचार परिषद (वर्धा) के निदेशक डॉ. भरत महोदय, सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष महादेव विद्रोही, गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही, हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष शंकर सान्याल, गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, पूर्व अध्यक्ष राधा बहन भट्ट, केंद्रीय श्री गांधी आश्रम के राष्ट्रीय महासचिव ब्रजभूषण पांडेय, सर्वोदय समाज के संयोजक आदित्य पटनायक, केंद्रीय गांधी स्मारक निधि के महामंत्री संजय सिंह, आचार्य कृपलानी के पुराने सहयोगी दीनानाथ तिवारी आदि ने अपने विचार रखे। दो वैज्ञानिकों -- सेंटर फोर टेक्नोलॉजी एंड डेवलपमेंट के निदेशक डॉ. डी. रघुनंदन एवं मेजर एस. चटर्जी द्वारा आधुनिक प्रौद्योगिकी का पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन भी किया गया रिसंवाद के अंत में प्रतिभागियों को  चरखे का वितरण किया गया। 



परिसंवाद का उद्देश्य गांधी-खादी एवं समग्र रचनात्मक कार्यक्रम के नवसर्जनार्थ देशव्यापी लोक आधारित सहभागी अभियान चलाने हेतु आमराय बनाना था। परिसंवाद के आयोजन को केंद्रीय गांधी स्मारक निधि, राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय, हरिजन सेवक संघ, सर्व सेवा संघ, आदिम जाति सेवा संघ, गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति, गांधी शांति प्रतिष्ठान, सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान, गांधी विचार परिषद (वर्धा) जैसी राष्ट्रीय स्तर की अनेक प्रतिष्ठित गांधी-विचारनिष्ठ संस्थाओं का सहयोग प्राप्त था। परिसंवाद का संयोजन-संचालन सुरेन्द्र कुमार ने किया जबकि अतिथियों का स्वागत अभय प्रताप ने किया। आयोजन में विशेष मदद सर्व सेवा संघ के खादी समिति के संयोजक अशोक शरण ने की

कार्यक्रम से संबंधित तस्वीरें देखने के लिए निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करें --



Sunday, July 2, 2017

रिपोर्ट: 'आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान'- 2017 -- 'सत्याग्रह' का सफल प्रयोग चंपारण में हुआ- अरविंद मोहन




संघर्ष के नए हथियार 'सत्याग्रह' का सफल प्रयोग चंपारण में हुआ- अरविंद मोहन


  


 नई दिल्ली, 7 जुलाई। चंपारण सत्याग्रह का यह शताब्दी वर्ष है। इसलिए नील किसानों की दुर्दशा और गांधी जी के सत्याग्रह को देश भर में याद किया जा रहा है। इस दौरान कई लेखक और पत्रकार चंपारण सत्याग्रह के इतिहास को फिर से खंगाल रहे हैं।  वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक अरविंद मोहन ने चंपारण में गांधी के कालखंड का क्रमबद्ध अध्ययन किया है। चंपारण सत्याग्रह पर उनकी अनेक पुस्तकें आ चुकी हैं। अध्ययन के दौरान प्राप्त अपने अनुभवों को उन्होंने गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित  'आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान' में साझा किया। स्मृति व्याख्यान का आयोजन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट ने किया था।


'चंपारण सत्याग्रह में गांधी एवं उनके सहयोगी' विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए अरविंद मोहन ने कहा कि चंपारण में नील किसानों की दुर्दशा देखने गए गांधी जी ने सोचा था कि दो चार दिन में हालात को देखने के बाद वे वापस आ जाएंगे लेकिन चंपारण में गांधी जी कुल साढ़े नौ महीने रहे। गांधी जी के आंदोलन से नील की खेती बंद हुई और इतिहास में यह घटना चंपारण सत्याग्रह के  नाम से प्रसिद्ध हुई। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और बाकी आंदोलनों के लिए नया मानक गढ़ दिया। गांधीजी अपने आत्मकथा में बार-बार इस सत्याग्रह का जिक्र करते हैं।


उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने इतनी बड़ी लड़ाई सत्य के आग्रह के साथ लड़ी जो बाद में देश और विश्व के जनआंदोलनों के लिए एक हथियार साबित हुआ। इस पूरी लड़ाई में गांधी जी ने बिहार से बाहर के नेताओं या कार्यकर्ताओं को नहीं बुलाया। स्थानीय लोगों की मदद से पूरा संघर्ष चला। आम जनता से लेकर शिक्षक, वकील और किसानों ने उनका भरपूर साथ दिया। एक तरफ ब्रिटिश शासन था तो दूसरी तरफ निहत्थे गांधी।
उनका कहना था कि इस पूरे आंदोलन में गांधी जी न सिर्फ नील की खेती के शोषण के खिलाफ लड़े बल्कि स्थानीय स्तर पर व्याप्त छुआछूत और  अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता भी फैलाई। गांधी जी ने आंदोलन के समय अलग-अलग रसोई में बनने वाले खाने को एक रसोई में बनवाना शुरू किया। हर जाति-धर्म के  लोग गांधी जी के कहने पर  एक ही रसोई में बना खाना खाने लगे। 
उन्होंने आगे कहा कि इतिहास में  चंपारण सत्याग्रह का महत्व इसलिए भी है क्योंकि गांधी जी ने इस आंदोलन में संघर्ष का एक नया हथियार और  प्रतिमान गढ़ा। अहिंसात्मक संघर्ष का यह हथियार आज विश्व भर में उपयोगी साबित हो रहा है। 


अरविंद मोहन कहते हैं कि इस पूरे आंदोलन में गांधी जी ने अपना काम स्वयं किया। आंदोलन का कोई काम गोपनीय नहीं रखा। आंदोलन में शामिल लोगों पर भरोसा किया और स्वयं लोगों के विश्वास पर खरा उतरे।


कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे गांधीवादी समाजसेवी डॉ. एस एन सुब्बाराव ने कहा कि शुरू में आचार्य कृपलानी गांधी जी के अहिंसात्मक संघर्ष से सहमत नहीं थे अतः उन्होंने इतिहास को याद कराते हुए कहा कि गत दो हजार वर्षों के विश्व इतिहास में कहीं भी अहिंसा से विजय नहीं मिली है। फ्रांस से लेकर अधिकांश देशों ने स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र संघर्ष किया है। इसके जवाब में गांधी जी ने कहा कि यह सही है कि इतिहास में ऐसा उदाहरण नहीं मिलता लेकिन यह भी सच है कि अभी इतिहास लिखा जाना बंद नहीं हुआ है। अगला अध्याय लिखा जाना अभी शेष है ।

कार्यक्रम में वरिष्ठ समाजवादी सतपाल ग्रोवर, केंद्रीय गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही, वरिष्ठ गांधीवादी पी एम त्रिपाठी, गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, मंत्री अशोक कुमार व पूर्व मंत्री रमेश शर्मा, मंजुश्री मिश्रा, एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक जगमोहन सिंह राजपूत, वरिष्ठ लेखक एस एन शर्मा, संदीप जोशी, वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह, हरिमोहन मिश्र, शिवेश गर्ग तथा एच एन शर्मा, अटल बिहारी शर्मा, डॉ. राजीव रंजन गिरी, वंदना झा, मनीष चंद्र शुक्ल के अलावा ढेर सारे पत्रकार-लेखक एवं बुद्धिजीवी उपस्थित थे। कार्यक्रम के आरंभ में गांधीवादी सीता बहन ने गांधी जी के प्रिय भजन वैष्णव जन का गायन किया। आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी अभय प्रताप ने सबके प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार प्रेम प्रकाश ने किया।