Monday, June 26, 2023

सुचेता कृपलानी की 115वीं जन्मतिथि पर संगोष्ठी

25 जून, नई दिल्ली। सुचेता कृपलानी भारतीय समाज, राजनीति, स्वतंत्रता आंदोलन और मानव सेवा का वह चमकता हुआ सितारा है जिसकी चमक कभी फीकी पड़ ही नहीं सकती। यह उद्गार वरिष्ठ पत्रकार नीलम गुप्ता ने स्वर्गीय सुचेता कृपलानी की 115वीं जन्म तिथि पर आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किए। संगोष्ठी का आयोजन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा किया गया था। स्वर्गीय सुचेता कृपलानी की स्मृति में आयोजित संगोष्ठी में बोलते हुए नीलम गुप्ता ने बताया कि 1934 से 74 तक भारतीय राजनीति में सक्रिय रही सुचेता कृपलानी ऐसी कर्मयोगी थी जिन्होंने हर काम शुद्ध मन, शुद्ध बुद्धि और शुद्ध आत्मा के साथ किया। वह जब कोई काम हाथ में ले लेती थी तो उनके सामने व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं होता था महत्वपूर्ण होता था काम और लक्ष्य। दैनिक अख़बार जनसत्ता से लगभग तीन दशक तक जुड़ी रहीं नीलम गुप्ता ने आगे कहा कि सुचेता जी में दूरदृष्टि बहुत अच्छी थी और उनमें चीजों को, वस्तुस्थिति को भांपने की क्षमता भी गजब की थी। गांधीजी के मन में क्या चल रहा है यह समझना किसी के लिए आसान नहीं था लेकिन वह समझ लेती थी। इसलिए वह गांधी जी की चहेती थी। उनका आगे कहना था कि गांधीजी से तर्क करना किसी के लिए आसान नहीं था लेकिन सुचेता जी उनसे भी तर्क कर लेती थी और तर्क में जितनी भी थी और अंततः अपनी बात मनवाने में कामयाब हो जाती थी। स्वतंत्रता आंदोलन में सुचेता कृपलानी के महत्वपूर्ण योगदान की चर्चा करते हुए नीलम गुप्ता ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन में सभी बड़े नेता जब जेल चले गए तब किस प्रकार उन्होंने वर्षों तक भूमिगत आंदोलन चलाया तथा अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का भूमिगत दफ्तर बनाकर वर्षों तक उसका संचालन करती रहीं। उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह लगभग 4 वर्षों तक सुचेता कृपलानी भूमिगत रहकर रेडियो स्टेशन चलाती रहीं। प्रतिदिन वे बुलेटिन तैयार करती थी और उसका प्रसारण करती थी। इस दौरान उन्हें प्रतिदिन जगह और मकान बदलने पड़ते थे। इससे उनके संघर्ष और कार्य क्षमता का अंदाजा लगाया जा सकता है। मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए नीलम गुप्ता ने बताया कि नोआखली दंगे के दौरान लगभग पूरे 6 महीने तक सुचेता कृपलानी ने दंगा पीड़ितों के बीच राहत कार्य चलाया। इस दौरान उन्होंने दंगा पीड़ितों के बीच 25 राहत केंद्र स्थापित किए थे। उन्होंने यह भी बताया कि देश विभाजन के दौरान आए हुए शरणार्थियों के लिए सुचेता कृपलानी ने किस प्रकार जून 1947 में ही एक राहत समिति बनाकर दिल्ली में काम करना शुरू कर दिया था। नोआखली में तो उन्हें मां कहा गया लेकिन दिल्ली में राहत समिति के कार्यों को लेकर उन्हें मां और शेरनी दोनों कहा गया। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष पद्मश्री राम बहादुर राय ने कहा कि सुचेता जी का अपना एक स्वतंत्र व्यक्तित्व था। कृपलानी जी का जो स्वभाव था सुचेता जी ठीक उसके विपरीत थी। सुचेता जी बहुत मिलनसार थी। अगर कोई उनसे सलाह लेने जाता तो उसको वह सही सलाह देने की कोशिश करती थी। इस दौरान वे अपने शरीर की भी कोई परवाह नहीं करती थी यानी उनमें कोई नैतिक-आध्यात्मिक शक्ति थी क्योंकि जो महिला मुख्यमंत्री रही हो उससे इतनी उम्मीद करना कठिन है। जब जेपी आंदोलन शुरू हुआ तब सुचेता जी ने अपनी बीमारी का बिल्कुल ख्याल नहीं किया। उनके दोस्त-मित्र और उनको मानने वाले सब कहते थे कि थोड़ा अपना ख्याल रखिए लेकिन उन्होंने यह सोचकर कि इस देश में तानाशाही आने वाली है इसलिए लोगों को जगाना है, छोटी-छोटी सभाओं में जब उनको बुलाया जाता था तो वे वहां उत्साह से जाती थी जबकि उसके पहले उन्हें दिल का दो बार दौरा पढ़ चुका था। नई दिल्ली के हिंदी भवन में आयोजित संगोष्ठी में इतिहासविद डॉ. श्री भगवान सिंह, समाजसेवी अशोक शरण, क्रांति प्रकाश, जितेंद्र नारायण सिंह, वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी, निशांत कुमार, वैभव सिंह; दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. राजीव रंजन गिरी, डॉ. मनीष कुमार, डॉ. विपुल राय के अलावा रौशन शर्मा, प्रशांत, राकेश रजक, संजय भारतीय, विकास कुमार, सुधीर कुमार वत्स जैसे अनेक बुद्धिजीवी, पत्रकार, प्राध्यापक आदि मौजूद थे। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन एवं सुचेता कृपलानी की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ हुई। व्याख्यान के प्रारंभ में आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी अभय प्रताप ने मुख्य वक्ता का संक्षिप्त परिचय दिया तथा अंत में सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. डॉ. राकेश राणा ने किया।

Sunday, April 16, 2023

आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान- 2023

15 अप्रैल, नई दिल्ली। आचार्य कृपलानी का जो योगदान है, उनकी जो तपस्या है, उनका जो त्याग है उसके अनुरूप आजाद भारत में उनके लिए भूमिका नहीं बन सकी। यह उद्गार केरल के राज्यपाल महामहिम आरिफ मोहम्मद खान ने गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान- 2023 के दौरान मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए व्यक्त किए। स्मृति व्याख्यान का आयोजन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा किया गया था। उन्होंने आगे कहा कि आचार्य कृपलानी के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है लेकिन गोपाल कृष्ण गांधी ने जो कुछ लिखा है वह बहुत रुचिकर लगा। उनका कहना था कि आचार्य कृपलानी अपनी तरह के खास व्यक्ति थे। उनका अपना मिजाज था। महात्मा गांधी ने उन्हें एक पत्र में लिखा था कि ‘तुम जब शांतिनिकेतन में मिले थे तो तुम्हारे चेहरे से, तुम्हारे भावों से, तुम्हारी आंखों में मैं पढ़ सकता था कि तुम इस राष्ट्रीय आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाओगे।’ उन्होंने आगे कहा कि आचार्य कृपलानी की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि वे जीवतराम भगवानदास कृपलानी थे। यह बड़ा अर्थपूर्ण वाक्य है। उनका अपना व्यक्तित्व था। वे बापू के भक्त थे लेकिन प्रतिध्वनि नहीं थे। अपनी राय देने में कभी हिचकते नहीं थे। बापू का आदेश मानते थे, बापू का फैसला मानते थे, लेकिन जहां कहीं लगता था कि कोई नई बात कहनी चाहिए तो उन्हें कहने में कोई हिचक नहीं थी। वह बापू के विचारों के सशक्त व्याख्याकार थे लेकिन तोते की तरह बापू की बातों को रखते और दोहराते नहीं थे। वे अपने साथियों के सहयोगी और विश्वासपात्र थे लेकिन खुशामदी नहीं थे। महामहिम ने आचार्य कृपलानी के संसद में दिए गए भाषणों का जिक्र करते हुए कहा कि आचार्य कृपलानी के भाषणों को यदि पढ़ें तो महात्मा गांधी के अंतिम व्यक्ति का पैमाना ही उनके भाषणों का मार्गदर्शक सिद्धांत था। आने वाली पीढ़ी के संसद और विधानसभा सदस्यों के लिए उनके भाषण प्रेरणास्रोत हैं। उनके भाषणों में सरकार की आलोचना मिलती है लेकिन उस आलोचना में भी विद्वता है। मुख्य अतिथि श्री खान ने अहिंसा की अपनी सांस्कृतिक विरासत को समझाते हुए श्रीमदभगवद्गीता, वेदों व महाभारत से अनेक उदाहरण दिए। संस्कृत एवं अरबी के बहुत सारे उद्धरण देते हुए उन्होंने अहिंसा और देश की सांस्कृतिक विरासत को परिभाषित किया तथा आचार्य कृपलानी को उसका सशक्त वाहक बताया। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय ने कहा कि आचार्य कृपलानी कहा करते थे कि रचनात्मक काम तो अपनी जगह हैं लेकिन राजनीति को सुधारो। उन्होंने श्री गांधी आश्रम की स्थापना का जिक्र करते हुए यह बताया कि तब कृपलानी जी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्राध्यापकी कर रहे थे। वे बड़े लोकप्रिय प्राध्यापक थे। पं. मदन मोहन मालवीय चाहते थे कि कृपलानी प्राध्यापकी करते रहें लेकिन उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन के आह्वान के पश्चात बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ढाई सौ विद्यार्थियों के साथ छोड़ दिया और श्री गांधी आश्रम की स्थापना की। उन्होंने यह भी बताया कि इसमें ‘श्री’ शब्द क्यों जोड़ा गया। स्मृति व्याख्यान के दौरान केंद्रीय गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही, वरिष्ठ लेखक एवं गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, वरिष्ठ गांधीवादी राजनाथ शर्मा, जेपी आंदोलन के सशक्त सिपाही रहे मानवेंद्र किशोर दास, वरिष्ठ साहित्यकार एव लेखक डॉ. श्री भगवान सिंह, वरिष्ठ गांधीवादी समाजसेवी रमेश शर्मा, सर्व सेवा संघ के अशोक शरण, पत्रकार मनोज मिश्रा, उमेश चतुर्वेदी, विश्व युवक केंद्र के मुख्य संचालक उदय शंकर सिंह, सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर अजित राय, संदीप जोशी, जितेंद्र नारायण सिंह, डॉ राजीव रंजन गिरि जैसे तमाम बुद्धिजीवी एवं छात्र बड़ी संख्या में मौजूद थे। कार्यक्रम का शुभारंभ राजधानी कॉलेज (दि.वि.वि.) की सांस्कृतिक इकाई रूबायत द्वारा गांधी जी के प्रिय भजनों से हुई तथा समापन समूहिक राष्ट्रगान से हुआ। कार्यक्रम का संचालन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी अभय प्रताप ने किया तथा मुख्य अतिथि एवं सभी बुद्धिजीवी श्रोताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के ट्रस्टी वरिष्ठ गांधीवादी सुरेंद्र कुमार ने किया।