Sunday, April 16, 2023

आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान- 2023

15 अप्रैल, नई दिल्ली। आचार्य कृपलानी का जो योगदान है, उनकी जो तपस्या है, उनका जो त्याग है उसके अनुरूप आजाद भारत में उनके लिए भूमिका नहीं बन सकी। यह उद्गार केरल के राज्यपाल महामहिम आरिफ मोहम्मद खान ने गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान- 2023 के दौरान मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए व्यक्त किए। स्मृति व्याख्यान का आयोजन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा किया गया था। उन्होंने आगे कहा कि आचार्य कृपलानी के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है लेकिन गोपाल कृष्ण गांधी ने जो कुछ लिखा है वह बहुत रुचिकर लगा। उनका कहना था कि आचार्य कृपलानी अपनी तरह के खास व्यक्ति थे। उनका अपना मिजाज था। महात्मा गांधी ने उन्हें एक पत्र में लिखा था कि ‘तुम जब शांतिनिकेतन में मिले थे तो तुम्हारे चेहरे से, तुम्हारे भावों से, तुम्हारी आंखों में मैं पढ़ सकता था कि तुम इस राष्ट्रीय आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाओगे।’ उन्होंने आगे कहा कि आचार्य कृपलानी की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि वे जीवतराम भगवानदास कृपलानी थे। यह बड़ा अर्थपूर्ण वाक्य है। उनका अपना व्यक्तित्व था। वे बापू के भक्त थे लेकिन प्रतिध्वनि नहीं थे। अपनी राय देने में कभी हिचकते नहीं थे। बापू का आदेश मानते थे, बापू का फैसला मानते थे, लेकिन जहां कहीं लगता था कि कोई नई बात कहनी चाहिए तो उन्हें कहने में कोई हिचक नहीं थी। वह बापू के विचारों के सशक्त व्याख्याकार थे लेकिन तोते की तरह बापू की बातों को रखते और दोहराते नहीं थे। वे अपने साथियों के सहयोगी और विश्वासपात्र थे लेकिन खुशामदी नहीं थे। महामहिम ने आचार्य कृपलानी के संसद में दिए गए भाषणों का जिक्र करते हुए कहा कि आचार्य कृपलानी के भाषणों को यदि पढ़ें तो महात्मा गांधी के अंतिम व्यक्ति का पैमाना ही उनके भाषणों का मार्गदर्शक सिद्धांत था। आने वाली पीढ़ी के संसद और विधानसभा सदस्यों के लिए उनके भाषण प्रेरणास्रोत हैं। उनके भाषणों में सरकार की आलोचना मिलती है लेकिन उस आलोचना में भी विद्वता है। मुख्य अतिथि श्री खान ने अहिंसा की अपनी सांस्कृतिक विरासत को समझाते हुए श्रीमदभगवद्गीता, वेदों व महाभारत से अनेक उदाहरण दिए। संस्कृत एवं अरबी के बहुत सारे उद्धरण देते हुए उन्होंने अहिंसा और देश की सांस्कृतिक विरासत को परिभाषित किया तथा आचार्य कृपलानी को उसका सशक्त वाहक बताया। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय ने कहा कि आचार्य कृपलानी कहा करते थे कि रचनात्मक काम तो अपनी जगह हैं लेकिन राजनीति को सुधारो। उन्होंने श्री गांधी आश्रम की स्थापना का जिक्र करते हुए यह बताया कि तब कृपलानी जी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्राध्यापकी कर रहे थे। वे बड़े लोकप्रिय प्राध्यापक थे। पं. मदन मोहन मालवीय चाहते थे कि कृपलानी प्राध्यापकी करते रहें लेकिन उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन के आह्वान के पश्चात बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ढाई सौ विद्यार्थियों के साथ छोड़ दिया और श्री गांधी आश्रम की स्थापना की। उन्होंने यह भी बताया कि इसमें ‘श्री’ शब्द क्यों जोड़ा गया। स्मृति व्याख्यान के दौरान केंद्रीय गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही, वरिष्ठ लेखक एवं गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, वरिष्ठ गांधीवादी राजनाथ शर्मा, जेपी आंदोलन के सशक्त सिपाही रहे मानवेंद्र किशोर दास, वरिष्ठ साहित्यकार एव लेखक डॉ. श्री भगवान सिंह, वरिष्ठ गांधीवादी समाजसेवी रमेश शर्मा, सर्व सेवा संघ के अशोक शरण, पत्रकार मनोज मिश्रा, उमेश चतुर्वेदी, विश्व युवक केंद्र के मुख्य संचालक उदय शंकर सिंह, सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर अजित राय, संदीप जोशी, जितेंद्र नारायण सिंह, डॉ राजीव रंजन गिरि जैसे तमाम बुद्धिजीवी एवं छात्र बड़ी संख्या में मौजूद थे। कार्यक्रम का शुभारंभ राजधानी कॉलेज (दि.वि.वि.) की सांस्कृतिक इकाई रूबायत द्वारा गांधी जी के प्रिय भजनों से हुई तथा समापन समूहिक राष्ट्रगान से हुआ। कार्यक्रम का संचालन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी अभय प्रताप ने किया तथा मुख्य अतिथि एवं सभी बुद्धिजीवी श्रोताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के ट्रस्टी वरिष्ठ गांधीवादी सुरेंद्र कुमार ने किया।

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