चिंतन
प्रक्रिया में आये बदलाव के कारण ओझल हैं कृपलानी
हमारे देश में राज्य श्रेष्ठ मान लिया जाता है, समाज
दोयम। शायद यही कारण है कि राजपुरुष प्रधान हो जाते हैं और समाज का पहरुआ गौण। जी
हाँ, इस
देश में अगर ‘राज्य-समाज समभाव’ दृष्टिकोण अपनाया गया होता तो आज आचार्य
जीवतराम भगवानदास कृपलानी उतने ही लोकप्रिय और प्रासंगिक होते जितने कि सत्ता
शीर्ष पर बैठे लोग। वह व्यक्ति खरा था, जिसने गांधीजी के ‘मनसा-वाचा-कर्मणा’ के
सिद्धांत को जीवन पद्धति मानकर उसे अंगीकार कर लिया।


उक्त विचार मशहूर स्वतंत्रता सेनानी एवं
महात्मा गाँधी के अनन्य सहयोगी आ. जे. बी. कृपलानी की 126वीं जयंती पर आयोजित
संगोष्ठी में व्यक्त किए गए। यह आयोजन संयुक्त रूप से आचार्य कृपलानी मेमोरियल
ट्रस्ट तथा गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की ओर से किया गया था।
मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए कृपलानी जी के
निकट सहयोगी रहे दीनानाथ तिवारी ने उनसे जुड़े अनेक प्रसंगों का जीवंत वर्णन किया।
उनका कहना था कि कृपलानी कभी भी हाशिये पर नहीं गए, सिर्फ चिंतन-प्रक्रिया में आये बदलाव
के कारण वे थोड़ा ओझल हो गए हैं। उन जैसे व्यक्तित्व समय, देश और काल की मर्यादा से ऊपर उठकर
सदैव आदरणीय और पूजनीय रहेंगे। समाजवादी सोच रखने वाले दिल्ली वि.वि. के
सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ. रामचन्द्र प्रधान ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में
कृपलानी (दादा) को उद्धृत करते हुए कहा – ‘जो अन्न-वस्त्र उपजाएगा, वही
सरकार चलाएगा’। कृपलानी एक मिशन के रूप में युद्ध-स्तर पर कार्य करने में विश्वास
रखते थे। गांधी के सच्चे अनुयायी की तरह कुशलता में विश्वास रखते थे। उनके लिए बीच
का कोई रास्ता नहीं होता था।
वरिष्ठ पत्रकार एवं आ. कृपलानी के जीवनी लेखक
रामबहादुर राय ने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल (1946 -47) का
जिक्र करते हुए कहा कि उस समय देश विभाजन
के दौर से गुजर रहा था लेकिन लगभग सारे नीतिगत
निर्णय गांधी-नेहरू-पटेल द्वारा लिए जा रहे थे। ऐसे में कृपलानी ने
यक्ष-प्रश्न उठाया कि ‘पार्टी सरकार के अनुसार चलेगी या सरकार पार्टी
के अनुसार?’ देश में अस्थायी सरकार का गठन 2 सितम्बर,
1946
को हो चुका था और पंडित जवाहर लाल नेहरू उपाध्यक्ष की हैसियत से शासन संचालित कर
रहे थे। इसी मुद्दे पर आ. कृपलानी ने सिद्धांतों की खातिर कांग्रेस अध्यक्ष (57
वें) पद से त्यागपत्र दे दिया। पार्टी और सरकार के बीच शक्ति-पृथक्करण का यह
प्रश्न आज भी जीवंत है और आचार्य कृपलानी इसके उत्तर। अध्यक्ष पद पर रहते हुए ही
उन्होंने काम तलाश रहे एक युवा पत्रकार देवदत्त से कहा था कि ‘आजकल
तो मैं खुद ही बेरोजगार हूँ’। रामबहादुर राय ने कृपलानी के जीवन
वृतांत को पांच खण्डों में विश्लेषित कर उपस्थित श्रोताओं का ज्ञानवर्धन किया।
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी अभय प्रताप ने कहा कि आज की पीढ़ी आचार्य कृपलानी के अवदान से ठीक से परिचित नहीं है। जबकि कृपलानी दंपत्ति आज ज्यादा प्रासंगिक और सारगर्भित हैं। देश की प्रथम महिला मुख्यमंत्री (उत्तर-प्रदेश) श्रीमती सुचेता कृपलानी एवं आचार्य जे बी कृपलानी ने सात्विक और सैद्धांतिक राजनीति को अपना आदर्श माना। अभय प्रताप ने ट्रस्ट द्वारा हर पखवाड़े एक गोष्ठी करने की बात कही। इस अवसर पर अभय प्रताप द्वारा संपादित पुस्तिका ‘शहादत का रास्ता’ का लोकार्पण भी किया गया। यह आ. कृपलानी के पांच महत्वपूर्ण लेखों/भाषणों का संकलन है।
कार्यक्रम की शुरुआत मणिकुंतला जी (गन्धर्व
महाविद्यालय) के भजनों से हुई। अंत में, गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति की निदेशक
मणिमाला ने सभी के प्रति आभार प्रकट करते हुए उन्हें धन्यवाद दिया। कार्यक्रम का
संचालन संत समीर ने किया।