25 जून, नई दिल्ली। सुचेता कृपलानी भारतीय समाज, राजनीति, स्वतंत्रता आंदोलन और मानव सेवा का वह चमकता हुआ सितारा है जिसकी चमक कभी फीकी पड़ ही नहीं सकती। यह उद्गार वरिष्ठ पत्रकार नीलम गुप्ता ने स्वर्गीय सुचेता कृपलानी की 115वीं जन्म तिथि पर आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किए। संगोष्ठी का आयोजन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा किया गया था।
स्वर्गीय सुचेता कृपलानी की स्मृति में आयोजित संगोष्ठी में बोलते हुए नीलम गुप्ता ने बताया कि 1934 से 74 तक भारतीय राजनीति में सक्रिय रही सुचेता कृपलानी ऐसी कर्मयोगी थी जिन्होंने हर काम शुद्ध मन, शुद्ध बुद्धि और शुद्ध आत्मा के साथ किया। वह जब कोई काम हाथ में ले लेती थी तो उनके सामने व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं होता था महत्वपूर्ण होता था काम और लक्ष्य।
दैनिक अख़बार जनसत्ता से लगभग तीन दशक तक जुड़ी रहीं नीलम गुप्ता ने आगे कहा कि सुचेता जी में दूरदृष्टि बहुत अच्छी थी और उनमें चीजों को, वस्तुस्थिति को भांपने की क्षमता भी गजब की थी। गांधीजी के मन में क्या चल रहा है यह समझना किसी के लिए आसान नहीं था लेकिन वह समझ लेती थी। इसलिए वह गांधी जी की चहेती थी। उनका आगे कहना था कि गांधीजी से तर्क करना किसी के लिए आसान नहीं था लेकिन सुचेता जी उनसे भी तर्क कर लेती थी और तर्क में जितनी भी थी और अंततः अपनी बात मनवाने में कामयाब हो जाती थी।
स्वतंत्रता आंदोलन में सुचेता कृपलानी के महत्वपूर्ण योगदान की चर्चा करते हुए नीलम गुप्ता ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन में सभी बड़े नेता जब जेल चले गए तब किस प्रकार उन्होंने वर्षों तक भूमिगत आंदोलन चलाया तथा अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का भूमिगत दफ्तर बनाकर वर्षों तक उसका संचालन करती रहीं। उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह लगभग 4 वर्षों तक सुचेता कृपलानी भूमिगत रहकर रेडियो स्टेशन चलाती रहीं। प्रतिदिन वे बुलेटिन तैयार करती थी और उसका प्रसारण करती थी। इस दौरान उन्हें प्रतिदिन जगह और मकान बदलने पड़ते थे। इससे उनके संघर्ष और कार्य क्षमता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए नीलम गुप्ता ने बताया कि नोआखली दंगे के दौरान लगभग पूरे 6 महीने तक सुचेता कृपलानी ने दंगा पीड़ितों के बीच राहत कार्य चलाया। इस दौरान उन्होंने दंगा पीड़ितों के बीच 25 राहत केंद्र स्थापित किए थे। उन्होंने यह भी बताया कि देश विभाजन के दौरान आए हुए शरणार्थियों के लिए सुचेता कृपलानी ने किस प्रकार जून 1947 में ही एक राहत समिति बनाकर दिल्ली में काम करना शुरू कर दिया था। नोआखली में तो उन्हें मां कहा गया लेकिन दिल्ली में राहत समिति के कार्यों को लेकर उन्हें मां और शेरनी दोनों कहा गया।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष पद्मश्री राम बहादुर राय ने कहा कि सुचेता जी का अपना एक स्वतंत्र व्यक्तित्व था। कृपलानी जी का जो स्वभाव था सुचेता जी ठीक उसके विपरीत थी। सुचेता जी बहुत मिलनसार थी। अगर कोई उनसे सलाह लेने जाता तो उसको वह सही सलाह देने की कोशिश करती थी। इस दौरान वे अपने शरीर की भी कोई परवाह नहीं करती थी यानी उनमें कोई नैतिक-आध्यात्मिक शक्ति थी क्योंकि जो महिला मुख्यमंत्री रही हो उससे इतनी उम्मीद करना कठिन है। जब जेपी आंदोलन शुरू हुआ तब सुचेता जी ने अपनी बीमारी का बिल्कुल ख्याल नहीं किया। उनके दोस्त-मित्र और उनको मानने वाले सब कहते थे कि थोड़ा अपना ख्याल रखिए लेकिन उन्होंने यह सोचकर कि इस देश में तानाशाही आने वाली है इसलिए लोगों को जगाना है, छोटी-छोटी सभाओं में जब उनको बुलाया जाता था तो वे वहां उत्साह से जाती थी जबकि उसके पहले उन्हें दिल का दो बार दौरा पढ़ चुका था।
नई दिल्ली के हिंदी भवन में आयोजित संगोष्ठी में इतिहासविद डॉ. श्री भगवान सिंह, समाजसेवी अशोक शरण, क्रांति प्रकाश, जितेंद्र नारायण सिंह, वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी, निशांत कुमार, वैभव सिंह; दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. राजीव रंजन गिरी, डॉ. मनीष कुमार, डॉ. विपुल राय के अलावा रौशन शर्मा, प्रशांत, राकेश रजक, संजय भारतीय, विकास कुमार, सुधीर कुमार वत्स जैसे अनेक बुद्धिजीवी, पत्रकार, प्राध्यापक आदि मौजूद थे।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन एवं सुचेता कृपलानी की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ हुई। व्याख्यान के प्रारंभ में आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी अभय प्रताप ने मुख्य वक्ता का संक्षिप्त परिचय दिया तथा अंत में सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. डॉ. राकेश राणा ने किया।
Monday, June 26, 2023
Sunday, April 16, 2023
आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान- 2023
15 अप्रैल, नई दिल्ली। आचार्य कृपलानी का जो योगदान है, उनकी जो तपस्या है, उनका जो त्याग है उसके अनुरूप आजाद भारत में उनके लिए भूमिका नहीं बन सकी। यह उद्गार केरल के राज्यपाल महामहिम आरिफ मोहम्मद खान ने गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान- 2023 के दौरान मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए व्यक्त किए। स्मृति व्याख्यान का आयोजन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा किया गया था।
उन्होंने आगे कहा कि आचार्य कृपलानी के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है लेकिन गोपाल कृष्ण गांधी ने जो कुछ लिखा है वह बहुत रुचिकर लगा। उनका कहना था कि आचार्य कृपलानी अपनी तरह के खास व्यक्ति थे। उनका अपना मिजाज था। महात्मा गांधी ने उन्हें एक पत्र में लिखा था कि ‘तुम जब शांतिनिकेतन में मिले थे तो तुम्हारे चेहरे से, तुम्हारे भावों से, तुम्हारी आंखों में मैं पढ़ सकता था कि तुम इस राष्ट्रीय आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाओगे।’
उन्होंने आगे कहा कि आचार्य कृपलानी की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि वे जीवतराम भगवानदास कृपलानी थे। यह बड़ा अर्थपूर्ण वाक्य है। उनका अपना व्यक्तित्व था। वे बापू के भक्त थे लेकिन प्रतिध्वनि नहीं थे। अपनी राय देने में कभी हिचकते नहीं थे। बापू का आदेश मानते थे, बापू का फैसला मानते थे, लेकिन जहां कहीं लगता था कि कोई नई बात कहनी चाहिए तो उन्हें कहने में कोई हिचक नहीं थी। वह बापू के विचारों के सशक्त व्याख्याकार थे लेकिन तोते की तरह बापू की बातों को रखते और दोहराते नहीं थे। वे अपने साथियों के सहयोगी और विश्वासपात्र थे लेकिन खुशामदी नहीं थे।
महामहिम ने आचार्य कृपलानी के संसद में दिए गए भाषणों का जिक्र करते हुए कहा कि आचार्य कृपलानी के भाषणों को यदि पढ़ें तो महात्मा गांधी के अंतिम व्यक्ति का पैमाना ही उनके भाषणों का मार्गदर्शक सिद्धांत था। आने वाली पीढ़ी के संसद और विधानसभा सदस्यों के लिए उनके भाषण प्रेरणास्रोत हैं। उनके भाषणों में सरकार की आलोचना मिलती है लेकिन उस आलोचना में भी विद्वता है।
मुख्य अतिथि श्री खान ने अहिंसा की अपनी सांस्कृतिक विरासत को समझाते हुए श्रीमदभगवद्गीता, वेदों व महाभारत से अनेक उदाहरण दिए। संस्कृत एवं अरबी के बहुत सारे उद्धरण देते हुए उन्होंने अहिंसा और देश की सांस्कृतिक विरासत को परिभाषित किया तथा आचार्य कृपलानी को उसका सशक्त वाहक बताया।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय ने कहा कि आचार्य कृपलानी कहा करते थे कि रचनात्मक काम तो अपनी जगह हैं लेकिन राजनीति को सुधारो। उन्होंने श्री गांधी आश्रम की स्थापना का जिक्र करते हुए यह बताया कि तब कृपलानी जी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्राध्यापकी कर रहे थे। वे बड़े लोकप्रिय प्राध्यापक थे। पं. मदन मोहन मालवीय चाहते थे कि कृपलानी प्राध्यापकी करते रहें लेकिन उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन के आह्वान के पश्चात बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ढाई सौ विद्यार्थियों के साथ छोड़ दिया और श्री गांधी आश्रम की स्थापना की। उन्होंने यह भी बताया कि इसमें ‘श्री’ शब्द क्यों जोड़ा गया।
स्मृति व्याख्यान के दौरान केंद्रीय गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही, वरिष्ठ लेखक एवं गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, वरिष्ठ गांधीवादी राजनाथ शर्मा, जेपी आंदोलन के सशक्त सिपाही रहे मानवेंद्र किशोर दास, वरिष्ठ साहित्यकार एव लेखक डॉ. श्री भगवान सिंह, वरिष्ठ गांधीवादी समाजसेवी रमेश शर्मा, सर्व सेवा संघ के अशोक शरण, पत्रकार मनोज मिश्रा, उमेश चतुर्वेदी, विश्व युवक केंद्र के मुख्य संचालक उदय शंकर सिंह, सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर अजित राय, संदीप जोशी, जितेंद्र नारायण सिंह, डॉ राजीव रंजन गिरि जैसे तमाम बुद्धिजीवी एवं छात्र बड़ी संख्या में मौजूद थे।
कार्यक्रम का शुभारंभ राजधानी कॉलेज (दि.वि.वि.) की सांस्कृतिक इकाई रूबायत द्वारा गांधी जी के प्रिय भजनों से हुई तथा समापन समूहिक राष्ट्रगान से हुआ। कार्यक्रम का संचालन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी अभय प्रताप ने किया तथा मुख्य अतिथि एवं सभी बुद्धिजीवी श्रोताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के ट्रस्टी वरिष्ठ गांधीवादी सुरेंद्र कुमार ने किया।
Sunday, May 1, 2022
आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान : 2021-22
नई दिल्ली। देश की शासन व्यवस्था में जिस तरह 'तंत्र' यानी सिस्टम 'लोक' यानी जनता पर हावी हो रहा है, वह आज के समाज के लिए एक गंभीर चिंता है। इसको दुरुस्त करने के लिए नई पीढ़ी को सवाल करने होंगे। अगर ऐसा नहीं किया गया तो वह संघर्ष अधूरा रह जाएगा जिसे आचार्य कृपलानी ने पंडित नेहरू के शासन काल मेँ शुरू किया था।
ये बातें भोपाल स्थित देश में पत्रकारिता के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित संग्रहालय माधव राव सप्रे संग्रहालय के संस्थापक और वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर ने कही। वह प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी एवं महात्मा गांधी के अनन्य सहयोगी आचार्य जेबी कृपलानी की स्मृति में दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान-2022 मेँ बोल रहे थे। व्याख्यान का विषय "तंत्र बने सेवक, जनता हो स्वामी" था। व्याख्यान का आयोजन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट ने किया था।
विजय दत्त श्रीधर ने कहा कि डॉ. राम मनोहर लोहिया मानते थे कि जनता की बगावत ही संसद को अनुशासन में रख सकती है। डॉ. लोहिया के हवाले से उन्होंने कहा कि अगर जनता ने सवाल नहीं उठाया तो तानाशाही बढ़ती जाएगी। डॉ. लोहिया कहते थे कि 'अगर सड़कें खामोश हो जाएंगी तो संसद आवारा हो जाएगी।'
विजय दत्त श्रीधर ने कहा कि हमारे यहां संवैधानिक पदों पर बैठे लोग और राजनेता जब रिटायर हो जाते हैं तो उसके बाद भी उनको गाड़ी, मोटर, बंगला आदि सुख-सुविधाएं जनता के पैसे से मिलती रहती हैं, जबकि अमेरिका का राष्ट्रपति रिटायर होने के बाद आम नागरिक जैसा रहता है। दूसरी तरफ भारत में एक जिंदा व्यक्ति 25 वर्ष से यह साबित करने के लिए संघर्ष कर रहा है कि वह जिंदा है। उसकी धन संपत्ति उसके परिजनों ने भ्रष्ट नौकरशाहों की मिलीभगत से हड़प ली है।
पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर ने अपने व्याख्यान में कई दृष्टांतों के जरिए रोचक जानकारियां दीं। उनका कहना था कि लोकतंत्र में लोक यानी जनता के हिसाब से तंत्र यानी सिस्टम बनने चाहिए, लेकिन भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों ने तंत्र यानी सिस्टम के जाल में लोक यानी जनता को ऐसा फंसा दिया है कि जिसे राजा होना चाहिए वह प्रजा बन गया है और जिसे प्रजा होना चाहिए वह राजा हो गया है।
अपने व्याख्यान के क्रम में विजय दत्त श्रीधर ने महान साहित्यकार और पत्रकार माखन लाल चतुर्वेदी, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, रामधारी सिंह दिनकर जैसे लोगों को याद किया। उन्होंने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता में मानवीय संवेदना और सामाजिक सरोकार नहीं है तो वह कूड़ा है। उनका कहना था कि पहले जिसे नेता कहते थे उसको बहुत सम्मानित, प्रतिष्ठित और बौद्धिक माना जाता था, अब नेता कहने पर भ्रष्ट और बेइमान जैसी भावनाएं सामने आती हैं।
उन्होंने आगे कहा कि जनता को पूछना होगा कि जिस देश में 25 सौ साल से, बुद्ध-महावीर से लेकर महात्मा गांधी तक, अहिंसा के सिद्धांत को बढ़ावा दिया गया, वहां इतनी हिंसा क्यों हो रही है। अगर आज सवाल नहीं पूछे गए तो कल तानाशाह राजनेताओं की जमात खड़ी होती रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि यह बात समझ में नहीं आ रही है कि नागरिक नियम-कानून के लिए हैं या नियम-कानून नागरिक के लिए है। आज के समाज में जनता के पैसे से ही जनता को मुफ्तखोरी की आदत डालकर कामचोर बनाया जा रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि 1947 में महात्मा गांधी ने कहा था कि राजनीतिक आजादी तो मिल गई है, लेकिन यह मुकम्मल आजादी नहीं है।
अध्यक्षीय उद्बोधन के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. डॉ. अशोक सिंह ने कहा कि नई पीढ़ी के सामने अतीत की गलतियां सुधारने की गंभीर चुनौती है। इसका सामना करने के लिए आचार्य जेबी कृपलानी के संघर्षों और उनके कार्यों को पढ़ना और समझना होगा।
इससे पहले वरिष्ठ पत्रकार संत समीर ने पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर का परिचय दिया और बताया कि कैसे उन्होंने अखबार के संपादन का दायित्व छोड़कर पत्रकारिता संग्रहालय की स्थापना जैसा कठिन कार्य अपने हाथों में लिया।
कार्यक्रम की शुरुआत बापू के प्रिय भजनों से हुई। संचालन वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी ने किया और मुख्य अतिथि तथा कार्यक्रम मेँ शामिल अन्य सभी लोगों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी अभय प्रताप ने किया।
इस मौके पर दिल्ली वि॰ वि॰ के अवकाशप्राप्त प्रोफेसर डॉ. रामचंद्र प्रधान, एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक जगमोहन सिंह राजपूत, वरिष्ठ पत्रकार जय शंकर गुप्त, डॉ. राकेश पाठक, श्यामलाल यादव, मनोज मिश्र, वरिष्ठ गांधीवादी सतपाल ग्रोवर, मंजुश्री मिश्रा, संदीप जोशी, मुजफ्फरपुर के डॉ॰ विकास नारायण उपाध्याय व डॉ॰ अरुण कुमार सिंह तथा दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. शिवानी सिंह, डॉ. राजीव रंजन गिरी, डॉ. अरमान अंसारी, डॉ॰ मनीषचंद्र शुक्ल, डॉ॰ सुभाष गौतम, अच्युतनंद किशोर नवीन, डॉ॰ राघवेंद्र शुक्ल जैसे अनेक महत्वपूर्ण लोग मौजूद रहे।
Saturday, March 20, 2021
आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान- 2020-21
नई दिल्ली। जाने माने वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक डॉ. वेद प्रताप वैदिक ने कहा कि 140 करोड़ की आबादी वाला हिंदुस्तान का लोकतंत्र इसलिए सुरक्षित है, क्योंकि यहां का संविधान स्थायी, लचीला और निर्भय है। कहा कि दुनिया में किसी भी देश का संविधान इतना लचीला नहीं है। यह लोकतंत्र की निर्भयता का प्रमाण है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ शाहीन बाग और तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन चल पाए। कहा कि पत्रकार को निर्भय होना चाहिए, तभी वह पक्ष-विपक्ष से मुक्त होकर निष्पक्ष ढंग से सच को लिख और दिखा सकेगा।
डॉ. वैदिक आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान-2020-21 में मुख्य अतिथि और वक्ता के रूप में अपनी बात रख रहे थे। व्याख्यान का विषय 'भारतीय लोकतंत्र: पक्ष, विपक्ष और निष्पक्ष' था।
उन्होंने आचार्य कृपलानी को अपना गुरु बताते हुए कहा कि वह ऐसे नेता थे, जिनमें पद और धन की लोलुपता कभी नहीं रही। लेकिन वह पं. नेहरू और सरदार पटेल के सामने भी अपनी बात निर्भयता से बोलने से नहीं चूकते थे।
लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि देश के स्थायित्व के लिए जरूरी है कि सत्ता पक्ष के अच्छे काम की विपक्ष सराहना करे और विपक्ष के अच्छे सुझाव को सत्ता पक्ष स्वीकार करे। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया को याद करते हुए कहा कि तमाम विरोधों के बाद भी वे एक-दूसरे की बातों को महत्व देते थे। उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, स्विटजरलैंड जैसे देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां की आबादी हमारे देश से कम है, लेकिन निर्भयता नहीं है। हमारे देश में 140 करोड़ की आबादी में 90 करोड़ वोटर हैं। यहां निर्भय लोकतंत्र कायम है। उन्होंने बाहरी लोकतंत्र के साथ-साथ आंतरिक लोकतंत्र की मजबूती पर जोर देते हुए कुछ सुझाव भी दिए। कहा कि देश में जब तक कोई प्रत्याशी पचास फीसदी वोट न पा जाए तब तक उसे विजयी न घोषित किया जाए। बताया कि अब तक कोई भी सरकार प्रमाणिक सरकार इसलिए नहीं रही क्योंकि वह कुल वोटों का 50 फीसदी वोट नहीं पा सकी।
डॉ. वैदिक ने कहा कि मतदान करने की उम्र भले 18 वर्ष हो, लेकिन चुनाव में खड़े होने के लिए प्रत्याशी की उम्र 40 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए। उन्होंने राजनेताओं के राजनीति को धंधा बना लेने की कोशिश का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि इसकी वजह से ही राजनीति में भ्रष्टाचार अंदर तक घुसा हुआ है। उन्होंने कहा कि आचार्य कृपलानी इसके सख्त खिलाफ थे और वे किसी से पैसे नहीं लेते थे। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के राजधर्म की भी चर्चा की। कहा कि प्लेटो, अरस्तू और चाणक्य ने हमेशा राजधर्म को महत्व दिया और उसे सजीव लोकतंत्र के लिए जरूरी बताया।
स्वस्थ लोकतंत्र में भाषा के महत्व की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान जैसे छोटे देशों में भी न्यायपालिका में अपनी भाषा में बहस होती है। डॉ. लोहिया को याद करते हुए उन्होंने कहा कि 1965 में उन्होंने सबसे पहले सर्वोच्च न्यायालय में हिंदी में बहस करने की शुरुआत की। उनका कहना था कि देश में रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य सबको मुफ्त भले ही न हो, लेकिन सुलभ जरूर हो। उन्होंने सुझाव दिया कि यह तभी संभव होगा, जब मतदान को अनिवार्य बना दिया जाए। उन्होंने जातीय आरक्षण और जातीय संस्थाओं को भी खत्म करने पर जोर दिया।
व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए नेपाल के पूर्व सांसद और वरिष्ठ राजनेता हरि चरण शाह ने भारतीय संविधान और लोकतंत्र की सराहना करते हुए कहा कि नेपाल और भारत के संबंधों में मजबूती का यही आधार रहा है। भारत हमेशा से विश्व को दिशा दिखाता रहा है। कहा कि नेपाल की उन्नति में भारतीय लोकतंत्र का बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि राजशाही के बाद लोकतंत्र के लिए नेपाल को कम्युनिस्टों से लंबा संघर्ष करना पड़ा। यह अब भी जारी है।
व्याख्यान का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन करते हुए ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी अभय प्रताप ने कहा कि जिन मुद्दों को डॉ. वैदिक ने उठाया है, उनमें बहुत सारे मुद्दों पर चर्चाएं पहले भी हुई हैं, लेकिन इन सब पर लगातार चर्चा-परिचर्चा एवं बहस चलाने की जरूरत है। उससे भारतीय लोकतंत्र में शायद कुछ नए महत्वपूर्ण सुधार का रास्ता खुलेगा। आचार्य कृपलानी की पुण्य-तिथि पर होने वाले इस कार्यक्रम का आयोजन गांधी शांति प्रतिष्ठान में किया गया था। कार्यक्रम के प्रारंभ में राजधानी कालेज के बच्चों ने गांधी प्रार्थना और रामधुन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, महासचिव अशोक कुमार, दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. अशोक सिंह, डॉ. शिवानी सिंह, डॉ. राजीव रंजन गिरी, अरमान अंसारी, रौशन शर्मा, मनीष चंद्र शुक्ला, राकेश रजक, सुधीर कुमार वत्स, डॉ. विनीत भार्गव तथा बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी मौजूद रहे।