Tuesday, March 17, 2015

करनी होगी नई व्याख्या

- आचार्य जेबी कृपलानी  - 
मैं एक दूसरा पहलू आपके सामने रखना चाहता हूँ। बापू के जो रचनात्मक कार्य हैं, उनके बारे में फिर से बुनियादी विचार करने की जरूरत है। इस संबंध में मैं अपने ख्यालात पेश करता हूँ। बड़ी मुश्किल से, पचीस बरस मेहनत कर के अंग्रेजी सीखी। किसी तरह से अंग्रेजी में अपने ख्याल प्रकट कर लेता हूँ। अब यह हिन्दुस्तानी आई। हम हिन्दुस्तानी सीख नहीं पाए। जैसी टूटी-फूटी आती है उसमें बोलने की कोशिश करूँगा।
पुरानी चीजों का पुनर्जीवन
जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बापू ने रचनात्मक काम शुरू किए उन पर आप निगाह डालें, तो उनके बारे में बुनियादी तौर पर विचार कर सकेंगे। बापू ने पुरानी चीजें हमारे सामने रखीं। बुनियादी तालीम भी कोई नई चीज नहीं है। समाजवादियों ने उन्हें ‘रिवाइवलिस्ट’देखिए फिर दिक्कत आई। मैं ‘रिवाइवलिस्ट’ के लिए हिन्दी शब्द नहीं जानता (किसी ने पुनरुद्धारकशब्द सुझाया)। उद्धारकशब्द में वह सेन्स (मतलब) नहीं आता। समाजवादी और साम्यवादी कहते हैं कि बापू की ‘रिवाइवलिस्ट ऐक्टिविटी’ थी पुरानी चीजों के पुनर्जीवन की कोशिश थी।
क्रान्तिकारकता की पहचान
मेरी समझ में उन्होंने पुरानी चीजों को क्रान्तिकारक चीजें बना दिया। क्रान्तिकारक पद्धति जमाने की माँग को पूरा करने का एक तरीका है। जिस जमाने की जो क्रान्ति-प्रेरणा होती है, उसे पूरा करने वाली चीज क्रान्तिकारक साबित होती है। गांधी जी जब दक्षिण अफ्रीका से लौटे, उस वक्त जमाने की मांग परदेसी राज को हटाने की थी। यही उस वक्त की क्रान्ति-प्रेरणा थी। परदेसी राज हटाने की कोशिश करने वाले दो तरह के थे। नरम दल वाले और गरम दल वाले। दोनों का तरीका क्रान्तिकारक नहीं था। नरम दल वालों का विश्वास विनय, निवेदन और निषेध (प्रेयर, पीटिशन और प्रोटेस्ट) पर था। दूसरा तरीका बमवादियों का था। हिन्दुस्तान की परिस्थिति में बम गोले का तरीका दूर तक नहीं ले जा सकता था। महात्मा का अहिंसक तरीका उससे भी अधिक क्रान्तिकारी था। क्योंकि वह तरीका जमाने की मांग से मेल रखता था। बम का बेमौजू था। इसलिए लोगों को निडर न बना सका। गांधी जी का अहिंसक तरीका बम के तरीके से भी पुरअसर साबित हुआ।
क्रान्ति के साथ जोडऩे का तरीका
मैं सन् सत्रह, अठारह, उन्नीस और बीस में इतिहास का प्रोफेसर था। चरखा रखना बेवकूफी की बात समझता था। मेरी वृत्ति, शिक्षा-दीक्षा, सब कुछ उसके खिलाफ था। लेकिन उस बूढ़े ने चरखे का संबंध क्रान्ति के साथ जोड़ दिया, तो मुझे चरखा लेना ही पड़ा। ग्रामउद्योग देहातों में घर-घर चलते थे। आज भी थोड़े-बहुत चलते हैं। लेकिन गांधी ने उनको भी क्रान्ति के साथ जोड़ दिया। किसी चीज को क्रान्ति के साथ जोड़ देने का तरीका बड़ा कारगर तरीका है। बड़ा तेज तरीका है। महात्मा की सब प्रवृत्तियाँ क्रान्ति के साथ जुड़ गईं।
प्रार्थना भी क्रान्ति का साधन
और तो और, प्रार्थना भी क्रान्तिकारक हो गई। मैं एक अच्छा आदमी हूँ। इसलिए मैं प्रार्थना में नहीं जाता था। लेकिन हमारा नेता राजनैतिक बातें प्रार्थना में ही करता था। वह प्रार्थना में क्रान्ति लाया। जो लोग बिलकुल बे-ताल थे, उन्हें उसने अनुशासन सिखाया। रामधुन सुर में गाओ, तालियाँ ताल में बजाओ। जहाँ दो आदमियों का मिलकर गाना बेसुर होता था, वहाँ बड़ी-बड़ी सभाओं को एक सुर में रामधुन गाना सिखाया। बेतालों को ताल सिखाया। हिन्दुस्तानी आदमी कभी चुपचाप बैठना तो जानता ही नहीं। इतनी बड़ी प्रार्थना-सभाओं में उसने लोगों को एक-दूसरे के साथ मिलकर चुपचाप बैठना सिखाया। भंगी का काम इस देश में कौन-सा सभ्य आदमी करता। लेकिन उसने उसे भी स्वराज्य के काम के साथ जोड़ दिया। उसने कहा कि मैं बतलाता हूँ कि अंग्रेजों को कैसे निकाला जाये। हमने कहा, बतलाओ। फिर उसने कहा, चरखा लो, झाडू लो। इसलिए इन चीजों को अपनाना पड़ा। जिस चीज का जमाने की इन्कलाबी माँग के साथ ताल्लुक होता है, वह पुरानी होकर भी नया अर्थ लेकर आती है और क्रान्तिकारी रूप ले लेती है।
नमक नहीं क्रान्ति बनाई
जब तक खादी का संबंध अंग्रेजों का व्यापार और राज खत्म करने से था, तब तक लोगों ने बड़े उत्साह से खादी को अपनाया। अब वह मतलब पूरा हो गया। अब फिर मिल के कपड़े की बात शुरू हो गई। उन्नीस सौ तीस में बुड्ढे ने कहा, नमक बनाओ। मोतीलाल जी हँसते थे। लेकिन फैक्ट्स को डिमॉलिश करने वाला विजनवस्तुस्थिति को मात देने वाला दिव्य दर्शनगांधी के पास था। गांधी साबरमती से निकला! पैदल! बुलककार्ट मेंटलिटीवाला बैलगाड़ी की मनोवृत्ति वाला यह आदमी भला बैलगाड़ी में तो चलता! वह तो पैदल चला! हर कदम पर क्रान्ति की बिजली फैलाता चला। दांडी के समुद्र के किनारे उसने नमक नहीं, रेवोल्यूशन मैन्युफैक्चर किया  इन्कलाब बनाया। मगनवाड़ी में हमको कड़वे नीम की पत्ती खिलाई। खली तक खिलाई। हमने चुपचाप खाई। करते क्या! स्वराज जो चाहते थे। इन बातों के पीछे क्रान्ति की प्रेरणा थी।
बुढिय़ा का शगल?
अब इन चीजों में वह जान क्यों नहीं है? इसलिए कि क्रान्ति की पुरानी प्रेरणा खत्म हो गई। जिस उद्देश्य से हमने उन्हें अपनाया था, वह उद्देश्य पूरा हो गया। अब हमें इन प्रवृत्तियों को ओल्ड डेम्स ऐक्टिविटी’– बुढिय़ा का शगल नहीं बनाना है। हमको क्रान्तिकारियों से अब सुधारवादी नहीं बनना है।
क्रान्ति-प्रेरणा से अनुबंध
इसका यह अर्थ हुआ कि इन चीजों को आज की क्रान्ति-प्रेरणा के साथ जोडऩा होगा। हमको अपने चरखा, ग्रामोद्योग आदि कामों को क्रान्ति के साथ बाँधना होगा सिर्फ आर्थिक कारण बतला देना काफी नहीं है। स्वदेशी के जमाने में हमने देश की आर्थिक  उन्नति का कारण बतलाया। वह बात लोगों के दिल में नहीं जमी। जब उसका मेल अंग्रेजों को भगाने के साथ लगाया गया, तो स्वदेशी के आन्दोलन से देश सुलग उठा। अब अंग्रेज चले गए। अब आपको आज की परिस्थिति में नई क्रान्ति की व्याख्या करनी होगी और उस मुख्य क्रान्ति के साथ रचनात्मक काम का कोरिलेशन अनुबन्ध बतलाना होगा।
नई क्रान्ति का उद्देश्य
नई क्रान्ति का उद्देश्य इक्वेलिटैरियन सोसायटीसमतापूर्ण समाज है। चरखा, ग्रामोद्योग, बुनियादी तालीम, पाखाना-सफाई, इन सबको इस उद्देश्य के साथ जोड़ देना होगा। वरना अब इनके दिन लद गए। गांधी ने अंग्रेजी राज के विनाश की परिभाषा में चरखे की फिर से व्याख्या की और इस तरह मरे हुए चरखे को फिर से जिलाया। अब उस चरखे की नई क्रान्ति की परिभाषा में, नये सिरे से व्याख्या करो। यही बात दूसरे सारे कामों के लिए लागू है।
विकेन्द्रीकरण की जरूरत
शुरू-शुरू में काम के बदन के साथ उसकी रूह भी होती है। बाद में यह सिर्फ यांत्रिक रह जाता है। रूह नहीं रहती। आज के बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण के जमाने में उस परिभाषा में चरखे की व्याख्या करनी होगी। हम लोकसत्ता कायम करना चाहते हैं। उसका साधन औद्योगिक विकेन्द्रीकरण है। विकेन्द्रीकरण के सिवा जनतंत्र की बात झूठ है। केन्द्रीकरण से नौकरशाही आती है ब्यूरोक्रेसी या टेक्नोक्रेसी  नौकरशाही या तांत्रिकशाही दोनों लोकसत्ता की समान रूप से दुश्मन हैं। और जहाँ जनतंत्र नहीं, वहाँ अहिंसा नहीं। हम जवाहरलाल नेहरू से कहेंगे कि अगर आपको असली जनतंत्र से गरज है, तो केन्द्रीकरण का लालच छोडऩा होगा। जिस हद तक केन्द्रीकरण होगा उस हद तक जनतंत्र भी कम होगा।
इस विकेन्द्रीकरण की दृष्टि से आप अपनी कार्य प्रणाली की नई व्याख्या कीजिए। अब गाँव-गाँव में बिजली पहुँचेगी। तेल और कोयले का जमाना बीत रहा है। अब मोटरों के हिस्से, जहाजों और हवाई जहाजों के हिस्से, छोटे-छोटे कारखानों में बनेंगे। अमेरिका में विकेन्द्रीकरण की पद्धति से बड़े-बड़े जहाज युद्धकाल में बने। जमाना विकेन्द्रीकरण का है।
पुरानी चीजों की नई व्याख्या का महत्त्व
हमारे धर्म में पुरानी चीज की नई व्याख्या का बहुत महत्त्व है। वेदों पर, पुराणों पर, गीता पर नए-नए भाष्य लिखे गए और लिखे जा रहे हैं। तिलक ने, अरविंद ने, लाला लाजपतराय ने और बापू ने भी पुरानी गीता के नए अर्थ लगाए। किसी चीज को जिन्दा रखने का यह सबसे कारगर तरीका है। अगर आप सारे रचनात्मक संघों का एकीकरण करते हैं, तो जरूर कीजिए। बात बहुत अच्छी है। लेकिन मेहरबानी कर के ध्यान में रखिए कि आपको अपनी प्रवृत्तियों की फिर से व्याख्या करनी है। किस दृष्टि से नई व्याख्या करनी है, यह भी मैंने थोड़े में बतलाया।
मिल कर काम करने की कला
एक बात और। हमारे देश में एक-एक आदमी अकेला बहुत अच्छा काम कर लेता है। इसलिए वह चाहता है कि हरेक बात उसकी मर्जी के मुताबिक हो। अपनी बराबरी वालों के साथ काम करने की कला हम लोगों में नहीं है। कुमारप्पा, जाजू जी, नायकम जी ये सब डिक्टेटोरियल टाइपतानाशाही छाप के आदमी हैं। उनके दफ्तर में उनके सामने कोई चूँ भी नहीं कर सकता। हमको एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने की कला बढ़ानी है। हम बाहर के आदमियों से मोहब्बत का रिश्ता जोड़ते हैं। लेकिन साथियों से बात करने की भी फुरसत नहीं। गांधी जी से एक बड़ी भूल हुई। उन्होंने हम से कहा कि अपने दुश्मनों से प्रेम करो! यहाँ तो भाइयों से भी प्रेम नहीं करते! इसलिए हमने भाइयों के साथ काम करना भी छोड़ दिया। हमारे स्टैंडर्ड दर्जे के लिए तो यही नियम हो सकता है कि मित्रों को प्रेम दो और दुश्मनों को न्याय दो। मुझमें भी यह नुक्स है। मैंने अपनों से प्रेम करना नहीं सीखा! कुछ आदमियों का यह ख्याल है कि मित्रों के साथ अन्याय किए बिना विरोधियों के साथ न्याय नहीं हो सकता।
न्यूटन और बिल्लियाँ
रचनात्मक संघों के संचालक अगर एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर काम करने लगेंगे, तो हमारे बीच भीतरी मुहब्बत और सहयोग कायम होगी। इस एक ही संघ से भाईचारे का काम भी हो सकेगा। इन संस्थाओं के मिलाप के लिए अलग संघ और आदमियों के मिलाप के लिए अलग संघ बनाने की बात सुनकर मुझे न्यूटन का किस्सा याद आता है। वह अपना कमरा बंद कर के अध्ययन करने बैठता। लेकिन अपनी प्यारी बिल्ली के लिए उसने दरवाजे में सूराक बना दिया। बिल्ली के जब बच्चा हुआ तो न्यूटन ने बड़ी बुद्धिमानी से बच्चे के लिए छोटा सूराक बनवाया। मानो बड़ा सूराक दोनों के लिए उपयोगी न था। हम भी इस तरह के छोटे और बड़े सूराक बनाने के चक्कर में न पड़ें।

रचनात्मक कार्यकर्ता सम्मेलन (खुला अधिवेशन) में 15 मार्च 1948 को दिया गया भाषण।

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